नाटक "लहरों के राज हंस" में दिखा अन्तर्विरोधों के बीच खड़े व्यक्ति का द्वंद।

  नाटक "लहरों के राज हंस" में दिखा अन्तर्विरोधों के बीच खड़े व्यक्ति का द्वंद।

पटना- देशभर में कोरोना महामारी को लेकर लंबे समय तक लॉक डाउन रहने के कारण बाकी सभी गतिविधि के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों में रंगमंच सबसे अधिक प्रभावित हुआ जिसके कारण अन्य प्रदेशों के साथ बिहार में खास कर पटना रंगमंच जो सबसे अधिक सशक्त माना जाता है वह भी कोरोना से बुरी तरह से प्रभावित रहा। तकरीबन आठ महीने बाद रविवार को पटना के कालिदास रंगालय में अभिनय आर्ट्स द्वारा प्रस्तुत नाटक "लहरों के राज हंस" की विराट प्रस्तुति देखने नाट्य प्रेमियों का हुजूम दिखा। चूंकि एक तो हिंदी नाट्य साहित्य के प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश का माइल स्टोन कहे जाने वाले नाटक "'लहरों का राजहंस' की प्रस्तुति जो संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित था जिसे रंग निर्देशक मणिकांत चौधरी ने निर्देशित किया और अभिनय आर्ट्स द्वारा प्रस्तुत किया गया था, दूसरा अरसे बाद लोगों को घर से बाहर निकल कर कालिदास रंगालय जैसे नाट्य स्थल का नजारा देखने आए जहां नाटक के बहाने सभी नाट्य प्रेमी एक दूसरे से मिलने का बेहतरीन अवसर पाया। नाटक सामाजिक चेतना जागृत करने और मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम माना जाता है लेकिन प्रस्तुत नाटक लहरों के राजहंस के अभिनय आर्ट्स की प्रस्तुति में कलाकारों ने जिस प्रकार अपने चरित्र को जिया वह कोई कहानी जैसा नही हर दर्शक को यथार्थ से साक्षातकार होते जैसा अनुभव किया गया।

नाटक 'लहरों के राजहंस' प्रसिद्ध लेखक मोहन राकेश द्वारा सांसारिक सुख और आध्यात्मिक शान्ति के अन्तर्विरोधों के बीच खड़े व्यक्ति के द्वन्द्व को दर्शाने वाला नाटक है। 

इसमें अतीत के एक कथानक के आधार पर आज के मनुष्य की बेचैनी और अन्त‌र्द्वन्द्व को सम्प्रेषित करता है। हर व्यक्ति को अपनी मुक्ति के पथ की तलाश स्वयं ही करना है। दूसरों द्वारा खोजा गया पथ भले ही कितना भी आकर्षक और मोहक क्यों न हो, किसी सम्वेदनशील व्यक्ति की मनोव्यथा का समाधान नहीं कर सकता। मनुष्य को अपनी मुक्ति का मार्ग स्वयं ही तलाशना होगा। यह नाटक स्त्री-पुरुष के पारस्परिक सम्बन्धों का अन्तर्विरोध भी उजागर करता है। जीवन के प्रेम और श्रेय के बीच जो कृत्रिम और आरोपित द्वन्द्व है, यही इस नाटक का केन्द्र बिन्दु है। मोहन राकेश के नाटकों में भाषा और उच्चारण बहुत ही कठिन होता है परन्तु सभी कलाकारों ने इसका लगातार रिहर्सल कर अपने चरित्र को बखूबी निभाया और दर्शकों ने भी अपनी तालियों से उनका हौसला बढ़ाया। इस नाटक में सुंदरी की भूमिका लाडली रॉय, नंद की भूमिका मणिकांत चौधरी, श्यामांग के भूमिका  अमलेश कुमार आनंद ने निभाया वहीं श्वेतांग के भूमिका में - आदर्श वैभव, आर्य मैत्रेय के भूमिका में- नवीन कुमार "अमूल", अलका के भूमिका में- मान्या राजलक्ष्मी, निहारिका के भूमिका में- चित्रा पटेल, शशांक के भूमिका में- मनीष कुमार गुप्ता और राज्य कर्मचारी के भूमिका में निकेश कुमार ने अपनी प्रस्तुस्ति दिया।

अमलेश आनंद -  पटना

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